Wednesday, 9 August 2017

Even the medicines needed in the district hospital

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जिला अस्पताल में जरूरी दवाओं का भी टोटा



 एटा: जिला अस्पताल की स्थिति सुधरने की बजाय लगातार बिगड़ती जा रही है। सामान्
जिला अस्पताल में जरूरी दवाओं का भी टोटाजिला अस्पताल में जरूरी दवाओं का भी टोटा
जागरण संवाददाता, एटा: जिला अस्पताल की स्थिति सुधरने की बजाय लगातार बिगड़ती जा रही है। सामान्य दवाओं के बाद अब जरूरी दवाओं का भी टोटा होने लगा है। यहां तक कि वार्डो और इमरजेंसी की व्यवस्थाएं भी प्रभावित हो रही हैं। जल्द ही दवाओं की आपूर्ति न मिली तो अस्पताल में इलाज मिलना दूभर हो जाएगा।

जीएसटी लागू होने के बाद बदली व्यवस्थाओं में सरकारी दवाओं की आपूर्ति व्यवस्था ऐसी लड़खड़ाई जो अब तक संभल नहीं सकी है। महीने भर का समय तो जिला अस्पताल को जीएसटी पंजीकरण मिलने में ही बीत गया। हफ्ता भर पहले जब अस्पताल को जीएसटी नंबर मिला तो यहां से 35 दवाओं के आर्डर कंपनियों को भेज दिए। इससे पहले जून में भी कई आर्डर कंपनियों को भेजे गए थे। जिनकी दवाएं अस्पताल को नहीं मिल सकीं। जबकि नए आर्डर में से अब तक सिर्फ बच्चों के बुखार के सीरप ही मिली हैं। अस्पताल के पास अन्य दवाओं का जो पुराना स्टॉक है, वह धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है। पिछले महीने से ही कई सामान्य दवाएं खत्म हो चुकी थीं। जबकि कुछ दवाएं तो बिल्कुल नहीं हैं और मरीजों को बस बहलाया जा रहा है। इनमें सबसे प्रमुख दर्द निवारक इंजेक्शन है, जिसका प्रयोग ओपीडी से लेकर इमरजेंसी तक में काफी अधिक होता है। एक्सीडेंट के मामलों में तो इसकी बहुत जरूरत होती है। एंटी बायोटिक दवाएं भी नहीं बची हैं। इनकी कमी में डॉक्टर भी पर्चा लिखते समय सोचने को मजबूर हैं। आमतौर पर लगने वाली डीएनएस आदि ड्रिप भी खत्म होने के कगार पर हैं। इससे महिला, मेडिकल-सर्जिकल वार्ड में समस्या खड़ी हो गई है। इमरजेंसी वार्ड के लिए कुछ कोटा रोककर रखा है। जल्द दवाएं नहीं मिलती हैं तो बाह्य रोगी विभाग तो दूर, इमरजेंसी वार्ड का संचालन भी मुश्किल होगा।

स्टेट के अलावा अन्य विकल्प बंद

अस्पताल को उप्र सप्लाई से मिलने वाली दवा के अलावा अन्य विकल्पों का बंद होना भी सिरदर्द बन गया है। जो दवाएं स्टेट रेट कांट्रेक्ट सूची में नहीं होती हैं या जिनकी सप्लाई समय से नहीं मिल पाती है, उन मामलों में सेंट्रल और तमिलनाडु की सप्लाई की दवाएं मंगाने का विकल्प होता है, लेकिन उन्होंने अभी नए साफ्टवेयर में वेंडर्स की अपलो¨डग नहीं की है। इसके चलते उन्हें आर्डर नहीं दिया जा सकता है।

लोकल परचे¨जग भी ठप

कामचलाऊ व्यवस्था के रूप में दवाओं की स्थानीय खरीद भी ठप है। इसके लिए डॉक्टरों की कमेटी बनाई गई है। जो टेंडर प्रक्रिया कराकर जरूरी दवाओं की आपूर्ति के लिए आपूर्तिकर्ता का चयन करेगी, लेकिन सुस्ती के चलते अब तक टेंडर प्रक्रिया नहीं हो सकी है।

महीनेभर पूरे ही प्रदेश में आर्डर रुके रहे थे। अब एकसाथ आर्डर पहुंचने से कंपनियों के लिए मांग के अनुरूप दवाओं की आपूर्ति समय से कर पाना आसान बात नहीं है। इसके लिए लगातार संपर्क किया जा रहा है, अन्य प्रयास भी किए जाएंगे। जिससे कम से कम आपातकालीन व्यवस्थाएं तो सुचारू रह सकें।

-डॉ. बी. सागर, सीएमएस, जिला चिकित्सालय।
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